
देवभूमि उत्तराखंड में प्रकृति के साथ एकात्मता का प्रतीक, Harela Festival की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई हैं। यह पारंपरिक लोक पर्व इस साल बुधवार, 16 जुलाई, 2025 को मनाया जाएगा, जो श्रावण मास के प्रारंभ और monsoon ritual की शुरुआत का प्रतीक है। इस वर्ष भी, यह पर्व पूरे राज्य में हरियाली और समृद्धि का संदेश लेकर आएगा।
उत्तराखंड की संस्कृति में गहराई से बसा यह त्योहार, किसानों और प्रकृति प्रेमियों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि Uttarakhand environment के संरक्षण और नई फसल के आगमन का उत्सव भी है।
बीज बोने से वृक्षारोपण तक: परंपरा और पर्यावरण संरक्षण
Harela Festival की शुरुआत दस दिन पहले ही हो जाती है, जब घरों में छोटे-छोटे बर्तनों या बांस की टोकरियों में जौ, गेहूं, मक्का और अन्य स्थानीय अनाजों के बीज बोए जाते हैं। इन अंकुरित बीजों को ‘हरेला’ कहा जाता है, जो त्योहार के दिन तक हरे-भरे हो जाते हैं। यह seed sowing का अनुष्ठान आने वाली फसल की समृद्धि का प्रतीक है।
त्योहार के दिन, परिवार के बड़े-बुजुर्ग इन हरेला को काटकर परिवार के सदस्यों के सिर और कानों पर रखते हैं, जो सुख-समृद्धि और लंबी आयु का आशीर्वाद माना जाता है। इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां, जिन्हें ‘डिकारे’ कहते हैं, बनाई और पूजी जाती हैं। यह clay idol worship लोक कला और धार्मिक आस्था का संगम है।
हाल के वर्षों में, tree plantation drives हरेला का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले साल हरेला पर वृक्षारोपण अभियान में भाग लेते हुए कहा था, “हरेला पर्व प्रकृति के प्रति श्रद्धा का पर्व है।” यह प्रयास राज्य सरकार की ‘देवभूमि ग्रीन’ पहल को भी बल देता है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संतुलन बनाए रखना और भावी पीढ़ियों के लिए स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करना है।
सामुदायिक भागीदारी और सरकारी भूमिका
Devbhumi community में हरेला एक ऐसा पर्व है जो एकजुटता और सहभागिता को बढ़ावा देता है। स्थानीय स्कूल, गांव और संग्रहालय इस उत्सव को मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं। भीमताल का प्रसिद्ध Harela Mela Bhimtal आकर्षण का केंद्र होता है, जहां 16 से 21 जुलाई तक सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्थानीय शिल्प और व्यंजनों का प्रदर्शन किया जाएगा। इस मेले में स्कूली बच्चों और स्थानीय कलाकारों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, जिससे युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति से जुड़ सके।
उत्तराखंड सरकार इस त्योहार को एक सार्वजनिक अवकाश घोषित करती है, ताकि सभी लोग इसमें सक्रिय रूप से भाग ले सकें। सरकार की विभिन्न Devbhumi green campaigns और पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता हरेला के माध्यम से परिलक्षित होती है। मुख्यमंत्री धामी ने किसानों की आय बढ़ाने और फसल विविधीकरण के लिए भी कई पहल की हैं, जिसमें बाजरा को बढ़ावा देना और न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि शामिल है। यह सब हरेला के कृषि-केंद्रित महत्व को और बढ़ाता है।
मानवीय कोण: किसानों और छात्रों की आशाएं
हरेला पर्व किसानों के लिए विशेष आशा लेकर आता है। उत्तरकाशी के एक प्रगतिशील किसान, रमेश भट्ट कहते हैं, “हरेला हमारे लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उम्मीद है। जब हम बीज बोते हैं और उन्हें अंकुरित होते देखते हैं, तो हमें लगता है कि आने वाला साल भी फसल के लिए अच्छा होगा। यह seed sprouting हमें प्रकृति से जुड़ने का एहसास दिलाता है।”
देहरादून के एक स्कूली छात्र, आदित्य नेगी, जो हर साल अपने स्कूल द्वारा आयोजित वृक्षारोपण अभियान में भाग लेते हैं, कहते हैं, “हरेला पर पेड़ लगाना मुझे बहुत पसंद है। इससे हमें महसूस होता है कि हम पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान दे रहे हैं। यह सिर्फ एक दिन का काम नहीं, बल्कि Uttarakhand environment को सुंदर रखने की जिम्मेदारी है।”
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1: हरेला महोत्सव 2025 कब है? (When is Harela Festival 2025?)
A1: हरेला महोत्सव 2025 बुधवार, 16 जुलाई को मनाया जाएगा। यह श्रावण मास के पहले दिन पड़ता है।
Q2: हरेला में कौन से प्रमुख अनुष्ठान किए जाते हैं? (What are the main rituals in Harela?)
A2: मुख्य अनुष्ठानों में 10 दिन पहले जौ, गेहूं आदि के बीज बोना (seed sowing), त्योहार के दिन हरेला को काटना और लगाना, तथा भगवान शिव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियों (clay idol worship) की पूजा करना शामिल है। वृक्षारोपण अभियान भी इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
Q3: हरेला पर्व का किसानों के लिए क्या महत्व है? (What is the significance of Harela Festival for farmers?)
A3: हरेला पर्व monsoon ritual की शुरुआत और नई फसल के आगमन का प्रतीक है। किसान अच्छी फसल और समृद्धि की कामना के साथ बीज बोते हैं। यह कृषि चक्र की शुरुआत का auspicious day है।
Q4: उत्तराखंड सरकार हरेला महोत्सव में क्या भूमिका निभाती है? (What role does the Uttarakhand government play in Harela Festival?)
A4: उत्तराखंड सरकार हरेला को सार्वजनिक अवकाश घोषित करती है और Devbhumi green campaigns के तहत बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाती है, जिसमें सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है।
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मैं एक passionate Blogger और Content Writer हैं, जो पिछले 2 वर्षों से Uttarakhand की आध्यात्मिक धरोहर, धार्मिक स्थलों और देवकथाओं पर आधारित कंटेंट लिखते आ रहा हैं।
मेरा उद्देश्य है कि उत्तराखंड की पवित्र भूमि — जिसे Devbhumi कहा जाता है — उसकी दिव्यता, मंदिरों की महिमा और लोक आस्था से जुड़ी कहानियाँ पूरे देश और दुनिया तक पहुँचाई जाएँ।
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