Uttarakhand Panchayat Election 2025 Stay:- चुनाव से पहले झटका- उत्तराखंड हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर लगाई रोक

Uttarakhand Panchayat Election 2025 Stay:- चुनाव से पहले झटका- उत्तराखंड हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर लगाई रोक
Uttarakhand Panchayat Election 2025 Stay:- चुनाव से पहले झटका- उत्तराखंड हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर लगाई रोक

नैनीताल, 23 जून 2025: उत्तराखंड में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा जारी नई नियमावली के आधार पर होने वाले इन चुनावों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर. सी. खुल्बे की खंडपीठ ने सोमवार, 23 जून 2025 को एक महत्वपूर्ण सुनवाई के बाद दिया। इस फैसले ने राज्य की चुनावी प्रक्रिया और ग्रामीण विकास की दिशा में एक नया मोड़ ला दिया है।

याचिका और 9 जून की नियमावली में बदलाव

यह रोक नंद किशोर और सौरभ बहुगुणा नामक याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) के बाद लगाई गई है। याचिकाकर्ताओं ने 9 जून 2025 को राज्य सरकार द्वारा जारी की गई नई नियमावली को चुनौती दी थी, जिसमें पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण और रोटेशन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे।

दरअसल, 9 जून को जारी की गई नई नियमावली में पूर्व की व्यवस्थाओं से हटकर कुछ बदलाव किए गए थे। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि वर्ष 2003 के पंचायत चुनाव के आधार पर आरक्षण और रोटेशन लागू करना असंवैधानिक है, जबकि नियमानुसार वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर इसे लागू किया जाना चाहिए था।

कोर्ट द्वारा रोक का कारण: आरक्षण और रोटेशन पर आपत्ति

हाईकोर्ट ने पंचायत चुनावों पर रोक लगाने का मुख्य कारण नई नियमावली में आरक्षण और रोटेशन की प्रक्रिया में पाई गई खामियां बताई हैं। याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि नई नियमावली में सीटों का आरक्षण और उनका चक्रानुक्रम विधि सम्मत नहीं है। उनका दावा था कि इसमें पारदर्शिता का अभाव है और यह कुछ विशेष वर्गों या व्यक्तियों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया है, जिससे अन्य वर्गों के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। अदालत ने इन आपत्तियों को प्रथम दृष्टया वैध मानते हुए चुनावों पर रोक लगाने का आदेश दिया।

राज्य सरकार का रुख और कोर्ट का निर्देश

राज्य सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए नई नियमावली का बचाव किया। सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों ने तर्क दिया कि ये बदलाव नियमों के अनुसार किए गए हैं और इनका उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को सुचारु और प्रभावी बनाना है। हालांकि, कोर्ट ने सरकार के तर्कों से फिलहाल सहमति नहीं जताई।

अदालत ने राज्य सरकार को इस मामले में अपना विस्तृत और संतोषजनक जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। सरकार को अब यह स्पष्ट करना होगा कि 9 जून की नियमावली में किए गए बदलाव किस आधार पर किए गए हैं और वे संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप कैसे हैं।

चुनाव आयोग की तैयारी और स्थगन का असर

उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग ने पंचायत चुनावों के लिए अपनी तैयारियां लगभग पूरी कर ली थीं। आयोग ने 25 जून 2025 से नामांकन पत्र दाखिल करने की तिथि निर्धारित की थी और इसके लिए सभी जिलाधिकारियों को आदेश भी जारी कर दिए थे। संभावित उम्मीदवारों ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी थीं। अधिसूचना जारी होने के बाद से ही विभिन्न राजनीतिक दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों में गहमागहमी का माहौल था।

इस स्थगन से चुनाव आयोग की अब तक की तैयारियों पर सीधा असर पड़ेगा। नामांकन की तिथियां रद्द हो जाएंगी और पूरी चुनाव प्रक्रिया को नए सिरे से निर्धारित करना पड़ सकता है। यह आयोग के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि उसे अब कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक इंतजार करना होगा।

जनता और प्रशासन पर संभावित प्रभाव

इस फैसले का ग्रामीण क्षेत्रों की जनता और स्थानीय प्रशासन पर भी सीधा प्रभाव पड़ेगा। पंचायतें ग्रामीण विकास की रीढ़ होती हैं और चुनाव स्थगित होने से विकास कार्यों में देरी हो सकती है। जिन पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, वहां विकास योजनाओं के क्रियान्वयन और जनता की समस्याओं के समाधान में ठहराव आ सकता है। प्रशासन को भी अब चुनाव संबंधी तैयारियों को फिलहाल रोकना होगा और कानूनी प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

निष्कर्ष: आगे की कानूनी प्रक्रिया

अब इस मामले में राज्य सरकार को हाईकोर्ट के समक्ष अपना विस्तृत जवाब दाखिल करना होगा। कोर्ट सरकार के जवाब और याचिकाकर्ताओं के प्रतिवाद पर अगली सुनवाई में विचार करेगा। यह संभव है कि कोर्ट सरकार को नई नियमावली में संशोधन करने या उसे रद्द करने का निर्देश दे। जब तक अदालत का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न नहीं हो पाएंगे। यह कानूनी लड़ाई कब तक चलेगी और इसका अंतिम परिणाम क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है कि उत्तराखंड की पंचायत राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है

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